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Shubha Khadke

चरैवेति चरैवेति अर्थात चलते रहो , चलते रहो…

प्राकृतिक और जैविक खेती पर जोर देते हुए, सरकार ने राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है जिसमें 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की सुविधा दी जाएगी। गुजरात में संस्थाएं और किसान इस दिशा में अग्रसर हैं, और SFI तथा AKRSP(I) और NCNF द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में प्राकृतिक खेती के लाभों और चुनौतियों पर चर्चा हुई। महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रमाणन प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर जोर दिया गया। किसानों, वैज्ञानिकों और संस्थाओं के बीच सतत संवाद और सहयोग से ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है।


उपनिषद का ये वाक्य प्राकृतिक/ जैविक खेती के सन्दर्भ में सही बैठता हैI इस दिशा में अभी सतत चलते रहने की जरुरत है।  वर्त्तमान में प्राकृतिक खेती, जैविक खेती, सुभाष पालेकर खेती आदि पर काफी चर्चा हो रही हैI  सरकार ने प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है, वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण 2023-24 में घोषणा की "अगले 3 वर्षों में, 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की सुविधा दी जाएगी। इसके लिए, 10,000 बायो -इनपुट रिसोर्स सेंटर (बीआरसी) स्थापित किए जाएंगे।'' क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण और प्रमाणन के लिए प्रदान की गई राशि के माध्यम से संस्थाओं , शिक्षाविदों और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोगात्मक रूप में कृषि पारिस्थितिकी को बढ़ाने का एक अच्छा अवसर है। परन्तु इसके लिए इन तीनों के बीच चर्चा जरुरी है , कार्यों पर स्पष्टता और आपसी सामंजस्य भी आवश्यक है।  कृषि पारिस्थितिकीय में हो रहे बदलाव  के लिए ऐसे शोध की आवश्यकता है जो पारंपरिक शैक्षणिक सीमाओं से परे हो। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की भागीदारी के लिए सह-विकसित प्रक्रियाओं में निवेश की आवश्यकता है।


गुजरात में इसी उद्देश्य से सतत प्रयास किये जा रहे है। यहाँ प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों की एक समृद्ध परंपरा है स्वर्गीय भास्कर सावे और सर्वदमन पटेल जैसे अग्रदूतों के खेत भारत में कृषि-पारिस्थितिकी आंदोलन को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, जो भारत और दुनिया के कई किसानों को आकर्षित और प्रशिक्षित करते हैं। राज्य भर में गैर सरकारी संस्थाएं भी  कृषि-पारिस्थितिकी-आधारित खेती को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहे हैं। गुजरात में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन के राज्य अध्याय का एक सक्रिय नेटवर्क बनाया है। इरमा (IRMA)  ने अपने " स्मॉल फार्म इनकम" प्रोजेक्ट के  माध्यम से, गुजरात में प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान , कृषि पारिस्थितिकी और प्राकृतिक खेती पर कार्यशालाओं और सेमिनारों के माध्यम से गुजरात में एक बहु-हितधारक शिक्षण गठबंधन (मल्टी स्टैकहोल्डर लर्निंग अलायंस) के निर्माण का समर्थन किया है। इसी कड़ी में “कृषि में सतत परिवर्तन के प्रबंधन” पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई थी, जिसमें प्राकृतिक खेती पर भारत सरकार की सलाहकार समिति के कई विद्वानों और सदस्यों की भागीदारी देखी गई। इन ज्ञान संवादों के परिणामस्वरूप एनसीएनएफ के गुजरात चैप्टर और गुजरात प्राकृतिक खेती और जैविक कृषि विश्वविद्यालय (अब गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय) द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जा रहे महिला-केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसे अभिनव प्रयोग हुए हैं।


इसी कड़ी में " स्मॉल फार्म इनकम" प्रोजेक्ट अंतर्गत और आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत  (AKRSPI) एवं  एनसीएनएफ के गुजरात चैप्टर के सहयोग से अहमदाबाद में एक राज्य-स्तरीय कार्यशाला भी आयोजित की गई जहाँ कृषि पारिस्थितिकी और प्राकृतिक खेती को बढ़ाने में किये गए सम्मिलित प्रयासों और  कुछ प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा की गईI कार्यशाला के प्रारम्भ में इरमा के प्रोफ़ेसर डॉ. शंभुप्रसाद ने कार्यशाला के उद्देश्य के अंतर्गत बताया कि  लर्निंग अलायन्स का उद्देश्य एग्रो इकोलॉजी या कृषि पारिस्थितिकी के सन्दर्भ में किया जा रहे प्रयासों को समझना और सीखना , नई - नई पद्धतियों को अपनाना और एक दूसरे को सीखने के स्तर पर मदद करना हैI जमीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों के ज्ञान और अनुभव को सरकार के साथ जोड़ना जरुरी हैI अन्यथा ये प्रयास केवल उन तक ही सीमित रह जायेंगेI 


आगा खान  ग्राम समर्थन कार्यक्रम के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री नवीन पाटीदार ने बताया कि प्राकृतिक खेती के सन्दर्भ में कई सकारात्मक बदलाव हुए है , गावों में लोग अब प्राकृतिक खेती के बारे में जानते है, संस्थाएं भी इस दिशा में काम कर रही है। समुदाय आधारित बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर (BRC) भी बन रहे है । महिलाओं के लिए आयोजित प्रशिक्षण के सफल संचालन  के बाद  एडवांस्ड कोर्स भी लॉन्च किये जा सकते हैI


कार्यक्रम में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम द्वारा प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों की कहानियां का संग्रह विमोचित किया गयाI गुजरात की 21 कहानियों के इस संग्रह को श्री संजय दवे  जी ने लिखा और सम्पादित किया हैI इन्ही किसानों में से कुछ किसानों ने अपनी प्राकृतिक खेती की अभी तक की यात्रा को साँझा कियाI उन्होंने बताया कि आने वाले सालों में सभी को प्राकृतिक खेती की तरफ जाना ही पड़ेगा क्योकि यही समय की मांग हैI प्राकृतिक खेती से जमीन में नमी का संतुलन बना रहता है ऐसे में कम पानी की जगहों पर भी इसे अपनाना फायदेमंद रहता हैI प्राकृतिक उत्पादों के मार्केटिंग की समस्या को भी  मूल्यवर्धन करके सुलझाया जा सकता हैI


गुजरात की कई संस्थाओ के लगभग 70 से अधिक प्रतिनिधियों के इस समागम में प्राकृतिक खेती से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुईI प्राकृतिक खेती पर लगातार अनुसन्धान हो रहे हैI किसान भी अपने स्तर पर प्रयोग कर रहे है जो उनके क्षेत्र और जलवायु के अनुरूप हो I संस्थाओं के काम उन्ही तक सीमित है , अब एक दूसरे से सिखने और सातत्य के साथ आगे बढ़ने का समय हैI


एग्रीकल्चर ट्रेनिंग मैनेजमेंट एजेंसी यानी आत्मा के नियामक श्री रबारी जी ने सभी संस्थाओं को साथ मिलकर काम करने का अनुरोध कियाI गोपका के निदेशक श्री कुरैशी जी ने सर्टिफिकेशन या प्रमाणीकरण के बारे में विस्तार से बताया।  उन्होंने एपिडा और गोपका के सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया भी बताईI उन्होंने कहा की क्रिटिकल स्टेज पर किसान अपनी फसल बचाने के लिए  केमिकल दवाई भी डाल देता है , अतः प्राकृतिक खेती में कब क्या उपचार करना है इसका प्रचार प्रसार करने की बहुत अधिक आवश्यकता है उन्होंने सर्टिफिकेशन या प्रमाणीकरण को सरल करने की आवश्यकता पर भी सहमति जताई और कहा इस दिशा में प्रयास जारी हैI इसी सत्र में कोहेजन फाउंडेशन की सुश्री हिरल ने खेती में महिलाओं की भूमिका  एवं व्यावसायिक बाजार में टिकने के लिए प्राकृतिक उत्पादों के लिए गुणवत्ता के मानदंड बनाने पर बात की I डेवलपमेंट सपोर्ट सेण्टर के श्री मोहन भाई ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से ही उत्पादकता बढ़ाने और खर्चे कम करने पर जोर दिया।


आणंद एग्रीकल्चर विश्विद्यालय की डॉ.हर्षा जी ने प्राकृतिक खेती के वैज्ञानिक पहलुओं को स्पष्ट कियाI जतन  ट्रस्ट के श्री कपिल भाई ने अनुसंधान की जरुरत पर ध्यान केंद्रित किया I प्राकृतिक खेती में केवल गाय के गोमूत्र और गोबर को ही लिया जाता है परन्तु भैसों के गोबर और मूत्र पर भी अनुसंधान जरुरी है , क्योकि हमारे देश में भैंसे बहुतायत में हैI उन्होंने जोर दिया की उत्पादकता के साथ ही प्राकृतिक खेती का कृषि पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, मिटटी में कार्बन कितना बढ़ा है इस तरह के मानदंड भी रखने चाहिएI  हमारे देश में प्रमाणीकरण के लिए आवश्यक प्रक्रिया का पालन होना चाहिए I


आगा खान फाउंडेशन के श्री अपूर्व ओझा ने "कृषि-पारिस्थितिकी को बढ़ाने" में नागरिक समाज की भूमिका पर चर्चा की । उनका कहना है कि विस्तार  के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। किसानों तक अपने वैज्ञानिक विचारों को पहुंचाने के लिए स्थापित प्रणाली के बजाय जमीन से उभरने वाले समाधानों का समर्थन करना चाहिए।


अंतिम सत्र में क्षमता वर्धन और विस्तार में आने वाली चुनौतियों और प्राकृतिक उत्पादों के मार्केटिंग के सम्बन्ध  चर्चा हुईI


वैज्ञानिक रूप से शोध करने वाली संस्थाएं , किसानो का अपना अनुभव एवं ज्ञान और विस्तार प्रक्रिया को साथ जोड़ने की भी जरुरत हैI विश्वविद्यालय वैज्ञानिक ज्ञान को ही महत्त्व देते है , किसानों के अनुभवाधारित ज्ञान को मान्यता नहीं मिल पाती  ऐसे में विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को किसानो के प्रयोगों पर अनुसन्धान करने की जरुरत है , जिससे उन प्रयोगों को वैज्ञानिक अनुसन्धान के रूप में मान्यता मिल सके I एक्सटेंशन या प्रचार तो सतत चलने वाली प्रक्रिया है। 


संक्षेप में कहा जाय तो इस विषय पर लगातार संवाद जरुरी हैI एक या दो कार्यशालायें या सेमिनार इस विषय पर संवाद शुरू करने के माध्यम हो सकते  है पर इसमें सभी हितग्राहियों में लगातार चर्चा आवश्यक हैI किसान ,सरकार और संस्थाओं में लगातार संवाद से ही अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैI


 

शुभा खड़के लिविंग फार्म इनकम (LFI) प्रोजेक्ट में एक प्रोग्राम और आउटरीच कंसलटेंट हैं।

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